स्तुति

 ।। जय सियाराम..।।

देव! तुम्हारे कई उपासक, कई ढंग से आते हैं।
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे, कई  रंग की लाते हैं।

धूमधाम से साजबाजसे वे मंदिर में आते हैं।
मुक्तामणि बहुमूल्य वस्तुएँ , लाकर तुम्हे चढाते हैं।

में ही हूँ गरीबिनी ऐसी , जो कुछ  साथ नहीं लाई।
फिर भी साहस कर मंदिर में, पूजा करने को आई।

धुप दीप नैवेध्य नहीं हैं, झांकी का  शृंगार नहीं!
हाय गले में पहिनाने को, फूलो का भी हार नहीं!

स्तुति कैसे करू की स्वरमें मेरे हैं माधुरी नहीं!
मन का भाव प्रकट करने की मुझमे हैं चातुरी नहीं!

नहीं दान हैं , नहीं दक्षिणा ,खाली हाथ चली आई!
पूजा की भी विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आई!

पूजा और पूजापा प्रभुवर, इसी पुजारिन को समझो!
दान दक्षिणा और निछावर, इसी भिखारिन को समझो!

में उन्मत प्रेम की लोभी,ह्रदय दिखाने आई हूँ!
जो कुछ हैं ,बस यही पास हैं, इसे चढाने आई हूँ!

चरणों पर अर्पण हैं , इसको चाहो तो स्वीकार करो।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही हैं, ठुकरा दो या प्यार करो!

--सुभद्राकुमारी चौहान

।। जय सियाराम ..।।

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